शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

मुखौटों की बस्ती.... संध्या शर्मा

http://www.janokti.com/wp-content/uploads/MasksChungSungJunGetty.jpgइतनी बडी बस्ती में
मुझे एक भी इंसान नहीं दिखता
चेहरे ही चेहरे हैं बस
किस चेहरे को सच्चा समझूँ
किसे झूठा मानूं
और उस पर इन सबने
अपनी जमीन पर बाँध रखी है
धर्म की ऊंची - ऊंची इमारतें
इन्ही में रहते हैं ये मुखौटे

क्षण प्रतिक्षण बदल लेते हैं
नाम, जाति, रंग‍,रूप

बसा रखा है सबने मिलकर
मुखौटों का एक नया शहर
जिन्हें चाहिए यहाँ सिर्फ मुखौटे
जिनमे मन, ह्रदय,
भावना कुछ नहीं
बस फायदे नुकसान के सबंध
इंसान जिए या मरे
कोई फर्क नहीं पड़ता 

इन मुखौटों को
लगे हैं
कारोबार में
श्मशान विस्तारीकरण के
ये नहीं जानते
मृत्यु केवल अंत नहीं
आरंभ भी है
भय नहीं आनंद भी है
जीवन एक परवशता,
अनिश्चितता है
सिर्फ और सिर्फ
मौत की निश्चितता है

साफ-साफ नज़र आने लगे हैं 
इन मुखोटों के पीछे छिपे चेहरे
बदलेंगे मुखौटे लेकिन 
नहीं बदलेंगे उनके चेहरे
इस सच्चाई के साथ
मैंने भी जीना सीख लिया है
मुखौटो की बस्ती में
अपना घर बना लिया है!!!!!

26 टिप्‍पणियां:

  1. झूठ और सच के बीच अब इतनी हल्की सी लकीर है कि ...कौन क्या है पता ही नहीं चलता .....खूबसूरत रचना ......सादर

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  2. आज के जीवन का, शत प्रतिशत ज्वलंत चित्रण!

    मुखौटे लगाने वाले जानते तो अवश्य हैं, किन्तु इस बात

    को स्वीकार नहीं करते कि ईश्वर ये मुखौटा ही नहीं पूरी खाल

    से आपके सूक्ष्म शरीर (आत्मा) को निकाल किन किन चीजों की खाल में भेज देता है ...

    बहुत ही बढ़िया .....

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  3. अखंड सत्य बयां करती सुन्दर और सटीक रचना, मुझे बेहद पसंद आई दिली बधाई स्वीकारें

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  4. बदलेंगे मुखौटे लेकिन
    नहीं बदलेंगे उनके चेहरे
    इस सच्चाई के साथ
    मैंने भी जीना सीख लिया है
    मुखौटो की बस्ती में
    अपना घर बना लिया है!!

    सच को बयान करती . आपने अपने दिल की मानी अच्छा किया .

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  5. सत्य का बयान करती सुन्दर रचना विजय्दाश्मीन पैर हार्दिक शुभ कामनाएं

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  6. शाश्वत सत्य को बयान करती हुई कविता और इसा दुनियां के कथित यथार्थ को उजागर करती हुई रचना के लिए बधाई।

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  7. सत्य को उजागर करती सटीक रचना..

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  8. मैंने भी जीना सीख लिया है
    मुखौटो की बस्ती में
    अपना घर बना लिया है!!!!!geena padta hai ......bahut acchi prastuti....

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  9. सत्य कहती सटीक रचना..
    बेहतरीन अभिव्यक्ति...
    :-)

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  10. मुखौटों के पीछे ही छिपे हैं सब चेहरे ....

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  11. जिसमें अपनी शक्ल नज़र आये वह अपना हो सकता है ... पर जुआ ही है
    अच्छा किया जो जीना सीख लिया

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  12. व्यक्ति जीवन में अगर इस अहसास से आगे बढ़ता है तो उसका जीवन निश्चित रूप से सभी के लिए प्रेरक होता है .....लेकिन विडंबना यह है कि हम जीवन की वास्तविकताओं को नजरअंदाज करते हैं और मुखौटों को धारण करते हैं ..... फिर जीवन जैसा होना चाहिए था वैसा नहीं होता ......!

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  13. मृत्यु केवल अंत नहीं
    आरंभ भी है
    भय नहीं आनंद भी है

    बहुत गंभीर बात अत्यंत भावपूर्ण.

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  14. यहाँ जीने के लिए मैंने भी एक मुखौटा लगा लिया है....

    बहुत सटीक और गहन रचना..
    सस्नेह
    अनु

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  15. मुखौटों का सच जानकर भी ....हमें उन्हें स्वीकारना है ...

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  16. कटु सत्य है.... जिससे आपने अवगत कराया है....

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  17. मृत्यु केवल अंत नहीं
    आरंभ भी है
    भय नहीं आनंद भी है
    हमारी सनातन सोच यही कहती है, जन्म और मरण पर भारतीय दर्शन कुछ ऐसा ही तो कहता है। बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई ।

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  18. जीवन की आपाधापी में व्यक्ति स्वयं मुखौटा बन जाता है, अपने असल रुप को छुपाने के लिए। मायावी दुनिया से संघर्ष करने के लिए उसे नित नए मुखौटे धारण करने पड़ते हैं। इन्ही मुखौटों के साथ न चाहते हुए भी जीवन बसर करना पड़ता है। जिसने समझ लिया दुनिया के सार को वह मुखौटों के साथ भी गुजर कर लेता है..........

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  19. इस सच्चाई के साथ
    मैंने भी जीना सीख लिया है
    मुखौटो की बस्ती में
    अपना घर बना लिया है!!!!!yahi sahi hai......

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  20. इस सच्चाई के साथ
    मैंने भी जीना सीख लिया है
    मुखौटो की बस्ती में
    अपना घर बना लिया है!

    सच्चाई के साथ जीना और मन की बात मानना चाहिए,,,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  21. बहुत सुन्दर .बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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  22. गंभीर बात कह डाली आपने कविता के माध्यम से

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