शनिवार, 19 मई 2012

आकांक्षा... संध्या शर्मा


खूब सो लिए जाग जाओ न, 
तुम आलस दूर भगाओ न.

कल कर लेना कल की बातें,
तुम गीत सुहाने दुहराओ न.

गहरे सागर से चुन-चुन कर,
चमकीले मोती ले आओ न .

जीवन की उर्वर धरती पर,
कुछ अपना सा बो जाओ न .

इन्द्रधनुष सा बनकर चमको,
तुम बादल जैसे छा जाओ न .

सांझ बीत गई रात आ गई,
अब चाँद को घर ले आओ न .

17 टिप्‍पणियां:

  1. सांझ बीत गई रात आ गई,
    अब चाँद को घर ले आओ न .waah...

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  2. जीवन की उर्वर धरती पर,
    कुछ अपना सा बो जाओ न .

    इन्द्रधनुष सा बनकर चमको,
    तुम बादल जैसे छा जाओ न .

    वाह ...बहुत खूबसूरत खयाल ...

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  3. जीवन की उर्वर धरती पर,
    कुछ अपना सा बो जाओ न .

    सुंदर सपने ...
    सुंदर अभिव्यक्ति ...!
    शुभकामनायें ..!

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  4. इन्द्रधनुष सा बनकर चमको,
    तुम बादल जैसे छा जाओ न .

    वाह ,,,, बहुत सुंदर रचना,,,लाजबाब पंक्तियाँ,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

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  5. बहुत ही प्यारी कविता है...संध्या जी

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  6. बहुत सुंदर संध्या जी....

    जीवन की उर्वर धरती पर,
    कुछ अपना सा बो जाओ न .

    इन्द्रधनुष सा बनकर चमको,
    तुम बादल जैसे छा जाओ न .

    बहुत प्यारी रचना.

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  7. इतनी सुन्दर मनुहार पर महा आलसी ..आलस.. भी भला कैसे रीझे न..

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  8. सांझ बीत गई रात आ गई,
    अब चाँद को घर ले आओ न .
    बहुत सुंदर प्यार भरा आग्रह..पर दिल दीवाना माने ना....

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  9. इन्द्रधनुष सा बनकर चमको,
    तुम बादल जैसे छा जाओ न .वाह: बहुत सुन्दर भाव..

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  10. उम्मीद और आशा का संचार करती ये पोस्ट बेहतरीन लगी।

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  11. सांझ बीत गई रात आ गई,
    अब चाँद को घर ले आओ न

    ....लाज़वाब पंक्तियाँ ! बहुत सकारात्मक और भावमयी प्रस्तुति...

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  12. प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  13. जीवन की उर्वर धरती पर,
    कुछ अपना सा बो जाओ न .

    सुंदर पंक्तियाँ..... विचारणीय बात

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  14. वाह...बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...

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