सोमवार, 2 मई 2011

मंज़िल......... संध्या शर्मा


ज़िंदगी में हर लम्हा मिला एक रास्ता,
मंज़िल थी पर कहाँ, क्या पता?
कदम बढ़ते रहे, कई मोड़ से गुज़रे,
कभी सहारे मिले, कभी रह गए अकेले.
कभी सुकून मिला पाकर?
कभी घबराये इनको खोकर.
राह मिलती गई, पर अंत अभी न आया है,
मगर हर राह से, कुछ ना कुछ तो पाया है.
अपनी रफ़्तार मैं बढाने लगी,
मंज़िल नज़दीक और आने लगी.
उम्मीद दे रही है मुझको सदा,
किसी ना किसी राह पर, हर ग़म, हर उलझने हो जाएँगी जुदा......  

28 टिप्‍पणियां:

  1. उम्मीद दे रही है मुझको सदा,
    किसी ना किसी राह पर, हर ग़म, हर उलझने हो जाएँगी जुदा......

    सुन्दर अति सुन्दर, मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती शानदार रचना.

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  2. 'अपनी रफ़्तार मैं बढ़ाने लगी

    मंजिल नज़दीक और आने लगी '

    ---------------------------------

    जिंदगी को हौसला देती ....भावपूर्ण रचना

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  3. आशा को प्राणवान करती विश्वास को जगाती सुन्दर रचना !

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  4. बहुत अच्छी लगी यह कविता.

    सादर

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  5. उम्मीद का दामन कभी नही छोडना चाहिये।

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  6. उम्मीद दे रही है मुझको सदा,
    किसी ना किसी राह पर, हर ग़म, हर उलझने हो जाएँगी जुदा......

    उम्मीद ही तो है जो देती है मंज़िल तक पहुँचने का सहारा..बहुत सकारात्मक सोच..सुन्दर रचना

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  7. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
    उम्मीद है तो सब है.

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  8. निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा.... राह पकड़ तू एक चलाचल की याद दिलाती कुछ पंक्तियां.... बहुत बढ़िया....

    आकर्षण

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  9. उम्मीद दे रही है मुझको सदा,
    किसी ना किसी राह पर, हर ग़म, हर उलझने हो जाएँगी जुदा.....

    बढ़िया रचना
    शुभकामनायें आपको !

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  10. यदि मंजिल का हो पता और इंसान उसे पाने की राह पर चल
    पड़े तो भाग्यशाली है.क्यूंकि एक न एक दिन मंजिल मिल ही
    जायेगी.
    आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  11. उम्‍मीद में ही दुनिया टिकी है।
    अच्‍छी रचना।
    अच्‍छे भाव।
    शुभकामनाएं आपको।

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  12. बहुत सुन्दर भावना पूर्ण रचना| धन्यवाद|

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  13. संध्या जी
    बहुत सुंदर कविता लिखी है
    बहुत खूब बहुत सुन्दर.... लाज़वाब प्रस्तुति.....सार्थक सृजन

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  14. इस सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  15. अपनी रफ़्तार मैं बढाने लगी,
    मंज़िल नज़दीक और आने लगी.

    खूब संध्याजी..... जीवन आशा को जगाती पंक्तियाँ....

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  16. अत्मविश्वास बना रहे हार जीत तो दोनो ही जीवन के अंग हैं---
    कुछ पाने से अधिक महत्व रखते हैं ज़िन्दगी के तज़ुर्बे। अच्छी रचना के लिये बधाई।

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  17. apni raftaar me bdhane lagi, manjil or paas aane lagi. . . Manjil ko pane ki prerna deti rachna. . . . . . . . . . , . . Jai hind jai bharat

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  18. उम्मीद दे रही है मुझको सदा,
    किसी ना किसी राह पर, हर ग़म, हर उलझने हो जाएँगी जुदा..

    जीवन में इसी उम्मीद का दामन राह दिखाता है ... बहुत खूब ...

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  19. अपनी रफ़्तार मैं बढाने लगी,
    मंज़िल नज़दीक और आने लगी.
    उम्मीद दे रही है मुझको सदा,
    किसी ना किसी राह पर, हर ग़म, हर उलझने हो जाएँगी जुदा......

    आपकी कविता में आशावादी दृष्टिकोण मुझे बहुत अच्छा लगा.

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  20. अति सुन्दर,शानदार रचना

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  21. बहुत खुब जिन्दगी कि सच्चाई यहि यह कि हमे कभी हर नही मानना चाहिए

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  22. राह मिलती गई, पर अंत अभी न आया है,
    मगर हर राह से, कुछ ना कुछ तो पाया है.
    बहुत ही बढ़िया !
    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - स्त्री अज्ञानी ?

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  23. blog ki progress k liye apko bahut bahut shubhkamnaye :)
    http://shayaridays.blogspot.com

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