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बुधवार, 23 मई 2012

खत... संध्या शर्मा

छूटा माँ का साथ
बहन की होगी मजबूरी
तू तो मेरा अपना है
मन है तुझे देखने का
कुछ अंतिम बातें करने का
रीत गईं साँसे
बिसरा ना बचपन
देर न करना
कहीं भूल न जाना
मुझसे मिलने जल्दी आना
यही लिखा था ना तुमने
कांपती कमजोर उँगलियों से
पास आती मौत के साथ
दिखता था आँखों में इंतजार
ख़त का नहीं उस अपने का
ऐसा नहीं कि तुम अकेली थी
हम सब थे तुम्हारे अपने
कैसे भूल सकती थी तुम
बचपन का साथ
वह नहीं आये
तुम चली गईं
देकर सारा प्यार
लेकर इंतजार
मिला था ना तुम्हे
उनका जवाब
तुम्हारे जाने के
ठीक तीन दिन बाद
तुम्हारी तस्वीर के आगे
जलते दीये, हार और
सुलगते चन्दन के साथ....

20 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक ... निःशब्द हूँ इस रचना कों पढ़ के .. दिल कों छू जाती है हर पंक्ति ...

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  2. आखें नम हो गयीं ये कविता पढ़कर... :-(

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  3. कुछ रचनाओं में मैं गले की तरह रुंध जाती हूँ

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  4. जी भर आया......
    आँखें नम हो गयी...............

    अनु

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  5. मार्मिक कर देनेवाली अभिव्यक्ति..

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  6. तुम्हारे जाने के
    ठीक तीन दिन बाद
    तुम्हारी तस्वीर के आगे
    जलते दीये, हार और
    सुलगते चन्दन के साथ...

    बहुत सुंदर मार्मिक अभिव्यक्ति,बेहतरीन दिल को छूती रचना,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  7. उफ्फ़...बहुत मार्मिक प्रस्तुति...

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  8. यही है दूनिया यही संसार है,
    यही है सार औ यही असार है।

    आभार

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  9. बहुत सुन्दर .....कोमल और संवेदनशील प्रस्तुति

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