पेज

मंगलवार, 22 मई 2012

ठिकाना...संध्या शर्मा


रफ़्ता रफ़्ता घर को सजाना होगा,
सपनों की जन्नत को बसाना होगा.

कभी तो आएगा चलकर यहाँ वो,
सफ़र में जो मुसाफ़िर बेगाना होगा.

दर्द दिया है जो उस जालिम ने,
रफ़्ता रफ़्ता उसे भी भुलाना होगा.

वस्ल की बात हो तो क्या कहने,
गमों को बंदनवार सा सजाना होगा.

बहुत भटके इस जहाँ में सितमगर,
गर वो मिल जाएं तो ठिकाना होगा.

13 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव से सजी सुन्दर गजल...
    हर नज्म सुन्दर है...

    जवाब देंहटाएं
  2. गमों को बंदनवार सा सजाना होगा...

    वाह...
    बहुत सुंदर गज़ल.....

    जवाब देंहटाएं
  3. वस्ल की बात हो तो क्या कहने,
    गमों को बंदनवार सा सजाना होगा... क्या कहने

    जवाब देंहटाएं
  4. वस्ल की बात हो तो क्या कहने,
    गमों को बंदनवार सा सजाना होगा.

    खूबसूरत गजल

    जवाब देंहटाएं
  5. @वस्ल की बात हो तो क्या कहने,
    गमों को बंदनवार सा सजाना होगा.

    गमों को बंदनवार सा सजा कर सारे गिले शिकवे दूर करने हैं। तभी वस्ल का मजा है। शेर वजनदार है और बिंब काफ़ी अच्छा बन पड़ा है। साधूवाद, भाव बनाए रखें।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत प्रेरक और सुंदर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  7. sundar ...har line shandar hain
    Thanks
    http://drivingwithpen.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं