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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

अल्हड़ बादल.... संध्या शर्मा

कभी कविता मिल जाती थी
विद्यार्थियों के अल्हड चेहरे पर
कोतुहल भरे भाव दिखते थे
नन्ही सी सुन्दर आँखों में
अब ना चेहरे पर पहचान है
ना ही आँखों में हैं भाव
सिर्फ बढ़ते ही जा रहे हैं
ऊंचाई में, आयु में
सिर्फ शरीर से
खोखली संवेदना लिए
कविता से दूर
परीक्षा में अंको के लिए
याद कर लेते है उसे
सिर्फ शब्दों की तरह
अब कोई कविता उन्हें
हँसाती नहीं
न ही भाव रुलाते हैं
"ओ हरे मन की कोमल कलियों
तुम कविता के फूल खिलाओ
सपनो की तितली बन जाओ
उजड़ा बाग़ महकाओ
बादलों की पतंग उडाओ
तारों की नदिया लहराओ
हवाओं के काँधे पर चढ़कर
सारी दुनिया घूम कर आओ
कविता गाओ, गीत बनाओ.... :)"

   

28 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान युग में संवेदनाएं तिरोहित हो रही हैं,
    अल्हड़ता जीने की आपा-धापी में खो रही है।
    अपने कलेजे पर पत्थर सा ढोता है आदमी,
    अब बहारें भी फ़ूल नहीं, कांटे ही बो रही हैं।

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  2. हवाओं के काँधे पर चढ़कर
    सारी दुनिया घूम कर आओ
    कविता गाओ, गीत बनाओ.... :)

    कविता बहुत ही बेहतरीन है.....संध्या जी

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  3. बहुत सटीक विषय पर एक सार्थक पोस्ट है आपकी |

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  4. खोखली संवेदना लिए कैसे गीत गायेंगे ..सोचे जा रही हूँ..

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  5. कोमल संवेदनाओं से रची रचना.....

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  6. सारी घूम कर आओ,कविता गाओ गीत बनाओ
    बहुत सुंदर संवेदन सील रचना,...

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  7. बिलकुल सही कह रही हैं आप. सुंदर सन्देश देती खूबसूरत रचना.

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  8. संवेदना की सोच सदा कायम रहे ..... यह सब तभी मुमकिन है...... बहुत उम्दा रचना

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  9. व्‍यहारिकता खोते जा रही है....
    लोग आभासी हो रहे हैं....
    प्रेक्टिकल कुछ नहीं सब थ्‍यौरी पर चल रहा है.... जीवन में ऐसा ही हो रहा है....
    सार्थक संदेश देती रचना।

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  10. ओ हरे मन की कोमल कलियों
    तुम कविता के फूल खिलाओ
    सपनो की तितली बन जाओ
    उजड़ा बाग़ महकाओ.बहुत खूब।

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  11. बहुत सही भाव ..
    अच्‍छी अभिव्‍यक्ति !!

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  12. आपकी बात से पूरी तरह से सहमत |
    सुन्दर रचना |

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  13. इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।

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  14. ्वाह संध्या जी कोमल भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  15. बहुत अच्छी और भाव पूर्ण रचना |
    आशा

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