बच्चों आओ मैं हूँ पेड़
मुझे लगाओ करो ना देर
जब तुम मुझे उगाओगे
धरती सुखी बनाओगे
दुनिया मेरी निराली है
हरियाली खुशहाली है
रोको मुझपर होते प्रहार
मैं हूँ जीवन का आधार
छाँव फूल फल देता हूँ
तुमसे कुछ नही लेता हूँ
वायू जहरीली पीता हूँ
शुद्ध हवा तुम्हें देता हूँ
प्रकृति का सम्मान करो
वसुंधरा का तुम ध्यान धरो
मेरा मन भी बहुत रोता है
दुख मुझको भी होता है
अब तो मुझको ना काटो
टुकड़ों टुकड़ों में ना बांटो
मुझसे ही बनते हैं उपवन
मैं हूँ, तो जीवित हैं ये वन
देता हूँ पंछी को ठिकाना
और चिड़ियों को दाना
रूठी प्रकृति को मनाना
कहते थे ये दादा नाना
बात उनकी तुम मानोगे
घर - घर पेड़ लगाओगे
आओ मिलकर पेड़ लगाएं,मानव जीवन को चलो बचाएं।
जवाब देंहटाएंसुंदर, प्रेरणादायक बाल गीत !
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर बाल रचना।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंबढ़िया सहज सरल बाल कविता।
जवाब देंहटाएंअरे वाह यह सन्ध्या का ब्लॉग है?
जवाब देंहटाएंजी हां दीदी ये हमारा ही ब्लॉग है। हार्दिक स्वागत आपका
हटाएंबच्चों से प्यारी गुहार ! सही सिपाही चुने आपने !
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