पेज
(यहां ले जाएं ...)
मुखपृष्ठ
मेरी कविताएं
▼
बुधवार, 18 जून 2025
सहनशीलता का प्रकाश... संध्या शर्मा
›
जब शरीर की थकी लकीरें आत्मा को घेर लेती हैं और मन के कोलाहल में एक सन्नाटा छा जाता है। तब भीतर के मंदिर में खड़ी होती आत्मा विनीत उस...
11 टिप्पणियां:
शुक्रवार, 21 मार्च 2025
अमर काव्य, जीवन आधार... संध्या शर्मा
›
कविता, शब्दों का जादू, भावनाओं की सरिता, इसकी हर पंक्ति में छुपा है, संसार, अद्भुत, अनोखा। कभी खुशियों के रंग बिखेरे, कभी गम की छा...
7 टिप्पणियां:
बुधवार, 5 जून 2024
हरियाली खुशहाली है... संध्या शर्मा
›
बच्चों आओ मैं हूँ पेड़ मुझे लगाओ करो ना देर जब तुम मुझे उगाओगे धरती सुखी बनाओगे दुनिया मेरी निराली है हरियाली खुशहाली है रोको मुझपर होते प्...
10 टिप्पणियां:
बुधवार, 20 मार्च 2024
जगह दे दो मुझे अपने आंगन में- संध्या शर्मा
›
ओ गौरैया! नन्ही सी तुम कितनी खुश थी अपनी मर्जी से चहचहाती थी जब जी चाहे सामर्थ्य भर भरती थी उड़ान छू लेती थी आसमान चहचहाती थी जहां जी चाहे ...
4 टिप्पणियां:
शुक्रवार, 8 मार्च 2024
मेरी मां सबसे प्यारी-संध्या शर्मा
›
हम तीन बहनों और एक भाई की मां। बहुत प्यारी, बहुत कुशाग्र बुद्धि वाली थी। मां ने राजनीति, समाज और गृहस्थी हर जगह अपनी कुशलता दिखाई। आज भी जबल...
12 टिप्पणियां:
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें