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बुधवार, 20 मार्च 2024

जगह दे दो मुझे अपने आंगन में- संध्या शर्मा

ओ गौरैया!


 नन्ही सी तुम


कितनी खुश थी


अपनी मर्जी से


चहचहाती थी


जब जी चाहे


सामर्थ्य भर


भरती थी उड़ान


छू लेती थी आसमान


चहचहाती थी


जहां जी चाहे 


उन्मुक्त होकर


फुदकती रहती थी


किसने लगा दी 


रोक-टोक तुम पर


क्या मेरी तरह 


लग गए है तुम पर


रीति - रिवाजों 


परंपराओं के बंधन


क्यों लुप्त हो गई तुम


कहो ना कुछ कहो तो


क्या खोज ली है तुमने


कोई और दुनिया?


तो बुला लो मुझे भी


वहीं जहां तुम हो....!


जगह दे दो मुझे


अपने आंगन में ....

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