बच्चों आओ मैं हूँ पेड़
मुझे लगाओ करो ना देर
जब तुम मुझे उगाओगे
धरती सुखी बनाओगे
दुनिया मेरी निराली है
हरियाली खुशहाली है
रोको मुझपर होते प्रहार
मैं हूँ जीवन का आधार
छाँव फूल फल देता हूँ
तुमसे कुछ नही लेता हूँ
वायू जहरीली पीता हूँ
शुद्ध हवा तुम्हें देता हूँ
प्रकृति का सम्मान करो
वसुंधरा का तुम ध्यान धरो
मेरा मन भी बहुत रोता है
दुख मुझको भी होता है
अब तो मुझको ना काटो
टुकड़ों टुकड़ों में ना बांटो
मुझसे ही बनते हैं उपवन
मैं हूँ, तो जीवित हैं ये वन
देता हूँ पंछी को ठिकाना
और चिड़ियों को दाना
रूठी प्रकृति को मनाना
कहते थे ये दादा नाना
बात उनकी तुम मानोगे
घर - घर पेड़ लगाओगे