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शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

ब्रह्मांड दूरियों का….!

सरोकार छूट जाऐं

बंधन टूट जाऐं

रस्ते बदल जाते हैं

रिश्ते रूठ जाते हैं

जैसे......!

दो बिन्दुओं का योग

सरल रेखा बनता है

लेकिन एक ही बिंदु से

निकलकर भी

मुंह मोड़कर

एक दूजे से

दो दूर जाती हुई

सरल रेखाओं के बीच

विस्तृत होता जाता है

एक अनंत विस्तार

जो रच ही देता है

एक न एक दिन

ब्रह्मांड दूरियों का….!

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