रड़क रही जो सीने में वो फ़ांस लिख दो।
मंज़िल जो हमसे अभी दूर बहुत दूर है,
ख्वाबों में मंज़िल का अहसास लिख दो।
गुंचा-ए-गुल खिला अबके इस गुलशन में,
राहे सफ़र में अपना हर ख्वाब लिख दो।
वक्त भी पढे जिसे कुछ खास लिख दो।
कान में चुपके से सरसराती हवा ने कहा,
इस घने अँधेरे में तुम उजास लिख दो।
याद रखे सदियों तक ये जमीं आसमां,
चलो कलम उठाओ इतिहास लिख दो।