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बुधवार, 2 जनवरी 2013

मुक्ति... संध्या शर्मा

मुक्त करती हूँ तुम्हे 
हर उस बंधन से 
जो बुने थे 
सिर्फ और सिर्फ मैंने 
शायद उसमे 
ना तुम बंध सके 
ना मैं बाँध सकी 
निकल जाना है  
अलग राह पर 
लेकर अपने 
सपनो की गठरी 
जिसे सौपना था तुम्हे 
खोलना था बैठकर 
तुम्हारे सामने 
लेकिन अब नहीं...!
क्योंकि जानती हूँ 
गठरी खुलते ही 
बिखर जायेंगे 
मेरे सारे सपने 
कैसे समेटूंगी भला 
दोबारा इनको 
और हाँ...! 
इतनी सामर्थ्य नहीं मुझमे 
कि समेट सकूँ इन्हें 
इसीलिए ...
कसकर बांध दिया है 
मैंने उन गाठों को 
जो ढीली पड़ गईं थी
मुझसे अनजाने में 
अच्छा अब चलती हूँ 
अकेले जीना चाहती हूँ 
बची - खुची साँसों को 
हो सकता है...?
तुम्हे मुक्त करके 
मैं भी मुक्ति पा जाऊं....

24 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ शायद यूँ ही मिले मुक्ति....

    बहुत सुन्दर...
    सस्नेह
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. इतनी सामर्थ्य नहीं मुझमे
    कि समेट सकूँ इन्हें
    इसीलिए ...
    कसकर बांध दिया है
    मैंने उन गाठों को
    जो ढीली पड़ गईं थी
    मुझसे अनजाने में
    अच्छा अब चलती हूँ
    अकेले जीना चाहती हूँ
    बची - खुची साँसों को
    हो सकता है...?
    तुम्हे मुक्त करके
    मैं भी मुक्ति पा जाऊं....

    अपने ही बुने गांठों को खोल पाना आसन है? और इससे भी ऊपर छोड़ देना कीमती चीजें ?

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  3. वाग्वैखरी शब्दझरी शास्त्र व्याख्यानम कौशलम।
    वैदुष्यम विदुषां तद्वद भुक्तए न तू मुक्तये ॥

    अर्थात-ऊंची आवाज में प्रवचन करना, शब्दों का प्रवाह बहा देना, शास्त्रों की कुशलतापूर्वक तरह-तरह से व्याख्या करना, विद्वता का प्रदर्शन करना आदि सब विद्वानों के उपभोग के लिए हैं मुक्ति के लिए नहीं। :)

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  4. हो सकता है...?
    तुम्हे मुक्त करके
    मैं भी मुक्ति पा जाऊं...
    बेहद गहन भाव लिये उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति

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  5. आदरणीया संध्या दी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं बेहद गहन भावों को भरा है सुन्दर प्रस्तुति बधाई .

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  6. जो मुक्त है वही मुक्त कर सकता है, और जो मुक्त कर सकता है वही मुक्ति का अधिकारी है...सुंदर भाव !

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  7. दुसरे को मुक्त करके हम स्वयं भी मुक्त हो जाते हैं.....गहन पोस्ट।

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  8. सुंदर अभिव्‍यक्ति ..
    सांसारिक मोह का ये बंधन ..
    कहां काट पाता है कोई ??

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  9. अच्छा अब चलती हूँ
    अकेले जीना चाहती हूँ
    बची - खुची साँसों को
    हो सकता है...?
    तुम्हे मुक्त करके
    मैं भी मुक्ति पा जाऊं....


    प्रभावी रचना

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  10. रचना दिल को छू लेने वाली ....

    जहां तक मुक्ति का प्रश्न है

    ग्रंथों में, शास्त्रों में केवल पढ़ा

    जा सकता है मुक्ति का जरिया

    वरना आत्मा के देह त्याग के बाद '

    ही जाना जा सकता है क्या है "मुक्ति"

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  11. मुक्ति की राह में ...
    गहरे भाव लिए रचना ... वन वर्ष मंगल मय हो ...

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  12. बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना..

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  13. अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त मर्मस्पर्शी रचना..!!!

    संजय भास्कर

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  14. पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
    कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं (29) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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