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मंगलवार, 13 नवंबर 2012

एक दीपावली ऐसी भी ... संध्या शर्मा

दीवाली सभी के लिए आती है बिना किसी भेद-भाव के, रोजी-मजूरी करने वाला हो या अरबपति-खरबपति सभी लक्ष्मी जी को ध्याते हैं। इस कमरतोड़ महंगाई के दौर में सब अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से दीवाली मनाते हैं, फर्क इतना है कि किसी के घर में हजार दीयों की रौशनी होती है तो कोई मन का एक दीप ही जलाता है. किसी की दीवाली मनती है तो किसी का दिवाला निकलता है। खैर जैसे भी हो इस महंगाई के दौर में मन का दीप जलाएं, अंतर्मन जग-मग हो ऐसी मने दीवाली .... आप  सभी को दीपावली की ढेरो शुभकामनायें.....

 http://farm3.static.flickr.com/2617/4102334582_6620e7a2b4.jpg

ज़िंदगी सब कुछ सिखा देती है इंसान को
कितना सही कहा है न कहने वाले ने
एक नन्हा सा आठ साल का बच्चा
दिन भर जिसके हाथ में होते थे
बिस्किट और चिप्स के पैकेट
जब उसके पिता जीवित थे
पिछले कुछ दिनों से देख रही हूँ
उन्ही नन्हे हाथों में ब्रश
पूरे घर को पुताई करके
संवारा सजाया उसने
लेकिन आज जो देखा
मन और आँखे दोनों भर गए
उसकी बालकनी पर दिखाई दी
छोटी सी रंग-बिरंगी लड़ी
पहली नज़र में आभास हुआ
शायद रंगीन बल्ब की झालर है
मन खुश हुआ था देखकर
सोचा चलो अच्छा है
इसबार सबसे पहले रौशन हो गया
इस नन्हे का छोटा सा घर
कुछ काम से छत पर गई
ध्यान गया उस रंगीन लड़ी पर
वह रंगीन बल्ब की झालर नहीं
रंगीन धागों की छोटी सी तोरण थी
शायद गणेशोत्सव से संभालकर रखी थी उसने
 कितनी बड़ी सोच है ना नन्ही सी जान की
ख्वाब है रंगीन भी हैं रौशनी नहीं तो क्या
आज नहीं तो कल होगा सबेरा
बचकर जायेगा कहाँ....

17 टिप्‍पणियां:

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  2. ईश्वर सभी को देता है

    सम्हलने का अवसर

    देखते हैं अक्सर

    अभावग्रस्त व्यक्ति

    जीत लेता है लड़ाई

    लड़ भाग्य के साथ

    उठा कर्म रुपी शस्त्र

    मैदान होता है

    जीवन रुपी "बक्सर"

    .......दृश्य घटना का सुन्दर चित्रण ...

    आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ...

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  3. दीपोत्सव की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
    सादर

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  4. कितनी बड़ी सोच है ना नन्ही सी जान की
    ख्वाब है रंगीन भी हैं रौशनी नहीं तो क्या
    आज नहीं तो कल होगा सबेरा
    बचकर जायेगा कहाँ....जब मन में जज्बा हो तो सब काम मुमकिन है...
    आपको सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ....
    :-)

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  5. बहुत सार्थक प्रस्तुति..आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  6. इसबार सबसे पहले रौशन हो गया
    इस नन्हे का छोटा सा घर
    कुछ काम से छत पर गई
    ध्यान गया उस रंगीन लड़ी पर
    वह रंगीन बल्ब की झालर नहीं
    रंगीन धागों की छोटी सी तोरण थी
    शायद गणेशोत्सव से संभालकर रखी थी उसने
    कितनी बड़ी सोच है ना नन्ही सी जान की
    ख्वाब है रंगीन भी हैं रौशनी नहीं तो क्या
    आज नहीं तो कल होगा सबेरा
    बचकर जायेगा कहाँ...

    आपका सोचने का अंदाज़ मन को छू गया वरना इस ज़माने में कौन किसकी सोचता है.

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  7. आवश्यकता आविष्कार की जननी है .. बहुत सुंदर संध्या बहन

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  8. ***********************************************
    धन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
    गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
    ***********************************************
    दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
    ***********************************************
    अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
    ***********************************************

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  9. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात

    दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं

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  10. बेहतरीन रचना
    बहुत देर से पहुँच पाया ..... सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  11. सार्थक और सशक्त रचना संध्या जी |

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  12. मन को छूती रचना। चाहे जो भी परिस्थिति हो, हर इंसान खुश रहने व अपनी दीपावली मनाने के तरीके पा जाता है। और यह इंसान का हक भी है।
    सादर
    देवेंद्र

    शिवमेवम् सकलम् जगत पर मेरी नयी पोस्ट विचार बनायें जीवन

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  13. "ध्यान गया उस रंगीन लड़ी पर वह रंगीन बल्ब की झालर नहीं रंगीन धागों की छोटी सी तोरण थी शायद गणेशोत्सव से संभालकर रखी थी उसने कितनी बड़ी सोच है ना नन्ही सी जान की ख्वाब है रंगीन भी हैं रौशनी नहीं तो क्या आज नहीं तो कल होगा सबेरा बचकर जायेगा कहाँ...."
    बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति है संध्या जी आपकी. आपको पहली बार पढ़ा, बधाई...
    ओ सूरज की सुर्ख किरण'
    अन्धकार मिटाने वाली...
    तू क्या चमके ! जैसे चमके ----
    भारत भू की ये दीवाली....
    - डॉ. विजय तिवारी "किसलय"

    जवाब देंहटाएं
  14. "ध्यान गया उस रंगीन लड़ी पर वह रंगीन बल्ब की झालर नहीं रंगीन धागों की छोटी सी तोरण थी शायद गणेशोत्सव से संभालकर रखी थी उसने कितनी बड़ी सोच है ना नन्ही सी जान की ख्वाब है रंगीन भी हैं रौशनी नहीं तो क्या आज नहीं तो कल होगा सबेरा बचकर जायेगा कहाँ...."
    बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति है संध्या जी आपकी. आपको पहली बार पढ़ा, बधाई...
    ओ सूरज की सुर्ख किरण'
    अन्धकार मिटाने वाली...
    तू क्या चमके ! जैसे चमके ----
    भारत भू की ये दीवाली....
    - डॉ. विजय तिवारी "किसलय"

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