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बुधवार, 19 सितंबर 2012

द्वितीयोनास्ति... संध्या शर्मा

हम सभी
मानते, कहते आये हैं
कण-कण में, तनमन में
भगवान है...
बिना किसी खोज
बिना किसी तर्क के
आँखों से देखा नहीं
सुनाई नहीं देता
स्पर्श तो दूर की बात है
गुण गंध से अनजान
तब भी....
कहीं तो है
कोई तो है
क्या है उसका नाम
'ग़ॉड पार्टिकल' कहें
या 'हिंग्ज़ बोसान'
नामहीन, गुणहीन
किसी भी नाम से पुकारो
डॉक्टर भी इलाज करते कहते हैं
उपचार करने वाला मैं हूँ
ठीक करने वाला वही है
प्रयत्नकर्ता हम है
यशदाता कोई और है
उसमें हममें बस भेद यही,
हम नर हैं वह नारायण
कुछ भी कर लो निर्माण
पर कैसे डालोगे प्राण...?

25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर संध्या जी....
    प्राण लेना देना इंसान के वश में हुआ तो अनर्थ हो जाए...
    बेहतरीन अभिव्यक्ति..
    सस्नेह
    अनु

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  2. प्रयत्नकर्ता हम है
    यशदाता कोई और है
    उसमें हममें बस भेद यही,
    हम नर हैं वह नारायण
    कुछ भी कर लो निर्माण
    पर कैसे डालोगे प्राण...?
    सदैव से जटिल रहा है यह प्रश्न और जिसने भी इसे जन लिया वह मुक्त हो गया माया जाल से से या परम पद को प्राप्त कर लिया

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  3. कुछ भी कर लो निर्माण
    पर कैसे डालोगे प्राण...?

    बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति ..

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  4. मानव एवं ईश्वर के बीच बस यही एक अंतर है। मानव प्राण हरता है पर दे नहीं सकता। ईश्वर प्राण देता है तो हरता भी है। जिसे प्राण डालना नहीं आता उसे प्राणहरण का कोई हक नहीं। मानव विज्ञान कितना भी शोध करले, पर उस ईश्वर के समान नहीं हो सकता, जो द्वितीयोनास्ति है। अद्वितीय है, उसके जैसा ब्रह्माण्ड में कोई दुसरा नहीं है।

    इशावास्यमिंद सर्वं यत्किंचितजगत्यामजगत।

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  5. कोई तो है जिसके आगे है आदमी मजबूर ...
    कोई तो है जो करता है मुश्किल हमारी दूर

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  6. बेहद सुन्दर रचना अच्छा है की सबकुछ इंसान के वश में नहीं है

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  7. उसमें हममें बस भेद यही,
    हम नर हैं वह नारायण
    कुछ भी कर लो निर्माण
    पर कैसे डालोगे प्राण...?

    सत्य वचन

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  8. कल 21/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  9. सही कहा है .. प्राण डालना ही तो एक काम है जिसके लिए उसे इंसान याद रखता है ...
    उसको नर से नारायण का दर्जा देता है ...

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  10. इन्सा चाहे कुछ कर ले,डाल सके ना जान
    नर नारायण के बीच , सिर्फ यही पहचान ,,,,,,

    RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का

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  11. कुछ भी कर लो निर्माण
    पर कैसे डालोगे प्राण?....sahi bat ..

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  12. सब कुछ अगर ईश्वर ही है तो फिर इंसान इतना इतराता क्योँ है ?

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  13. सुन्दर अभिव्यक्ति संध्याजी

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  14. बेहतरीन कविता, सुन्दर अभिव्यक्ति

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  15. बेहतरीन कविता है संध्या जी... अनु जी के कमेन्ट से सहमत हूँ... भगवान् सुनता है हमारी फरियादें...
    ************

    प्यार एक सफ़र है, और सफ़र चलता रहता है...

    --

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  16. उसमें हममें बस भेद यही,
    हम नर हैं वह नारायण
    कुछ भी कर लो निर्माण
    पर कैसे डालोगे प्राण...?

    ...सच कोई तो है, चाहे उसे हम कुछ भी नाम दें...बहुत सार्थक अभिव्यक्ति..

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  17. सुपुर्दे ख़ाक कर डाला तेरी आंखों की मस्ती ने
    हज़ारों साल जी लेते अगर तेरा दीदार ना होता

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  18. वाह....बहुत ही सुन्दर।

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  19. .

    द्वितीयोनास्ति !
    सच है !
    सार्थक अभिव्यक्ति...

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  20. उसमें हममें बस भेद यही,
    हम नर हैं वह नारायण
    कुछ भी कर लो निर्माण
    पर कैसे डालोगे प्राण...?

    सत्य तो यही है. सुंदर प्रस्तुति संध्या जी.

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  21. प्राण न डाल पायें लेकिन प्राण तत्व की खोज तो करते रहेंगे न।

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