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शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

खौफ़.... संध्या शर्मा

रात काफी हो गई है 
कितना वक़्त हो गया
सो जाना था अब तक मुझे
नींद है कि आने का नाम नहीं लेती
कवि हूँ, क्या नहीं कर सकती
कहाँ नहीं जा सकती
मन कहता है कहीं घूम आऊं
कहाँ जाऊं
रात है
गहरी काली रात
और लिख रही हूँ मैं
बिना किसी भय के
अचानक यह आवाज़ कैसी?
शायद ट्रकों के आपस में टकराने की आवाज़
भ्रम नहीं है यह ना कोई सपना
यथार्थ है
पहुँच गया मन मेरा वहां
ओह... कितना भयानक दृश्य
बिखरी हुई लाशें
बहता हुआ गरम खून
भिनभिनाते हुए मच्छर
और कोई भी नहीं
देखना....
कल कुछ नहीं होगा यहाँ
हाँ एक खबर जरुर बन जाएगी
छाप जाएगी अखबारों में
और मैं....
मैं अब भी जागूंगी
इस आह्ट के खौफ़ से........

21 टिप्‍पणियां:

  1. यही तो जीवन है.....
    गहन अभिव्यक्ति...

    सस्नेह.
    अनु
    (तीसरी पंक्ति में जाना दो बार टाइप हुआ है..)

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  2. देखना....
    कल कुछ नहीं होगा यहाँ
    हाँ एक खबर जरुर बन जाएगी
    छाप जाएगी अखबारों में
    और मैं....
    मैं अब भी जागूंगी
    इस आह्ट के खौफ़ से........

    ज़िन्दगी यूँ ही चलती है पल यूँ ही बितते हैं हम और आप साक्ष्य बन प्रति पल साद साथ होते हैं .

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  3. ज़िन्दगी यूँ ही चलती है पल यूँ ही बितते हैं हम और आप साक्ष्य बन प्रति पल सदा साथ होते हैं .

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  4. खौफ सपना बन जाता है ... परिवर्तन का,दर्द का

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  5. खौफ के साये में संवेदनशील रचना..
    गहन अहसास की अभिव्यक्ति...

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  6. गहन अहसास की अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर..

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  7. भावों की सुंदर अभिव्यक्ति | उम्दा रचना |
    मेरी पोस्ट में आपका स्वागत है |
    जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है

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  8. हादसे होते रहते हैं.....लेकिन जीवन तो यूहीं चलता रहता है ...और कोई चारा भी नहीं .....किस किस के दुःख को रोयें ...कितनों की तकलीफें ढोएं ....

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  9. खौफ तो खौफ है, हर जगह विद्यमान, बहरहाल सुन्दर रचना

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  10. ये हादसे जगह जगह होते हैं ... ये खौफ़ भी बढ़ रहे हैं ...

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  11. जीवन में कब कहाँ क्या हो जाये कुछ नहीं पता.....बहुत सुन्दर पोस्ट।

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  12. हादसा कोई भी हो मन को व्यथित करता ही है और अपने सामने गर्म खून को बिखरे देखना बहुत ही मुश्किल ....उफ़ बेहद मार्मिक

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  13. कभी कभी जेहन में ऐसे खयाल भी आते हैं ...जैसे कोई खौफनाक हादसा हो

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