बहुत कुछ लिखना है
जीवन की किताब में
कुछ शब्द उकेरना है
कुछ भाव समेटना है
कहाँ से शुरुआत करूँ
कहाँ जाकर रुकूँ
कभी लगता है भूत लिखूं
भविष्य लिखूं
क्यों ना वर्तमान लिखूं
यहाँ भी भटक जाती हूँ
लिखने लगती हूँ
बिना स्याही के
शब्द उभरते नहीं
स्याही मिली
तो शब्द ना सूझे
मिले भी तो ऐसे
कि भर आये नयनो से
झर-झर झर गए
जीवन के पन्ने
कोरे थे
कोरे ही रह गए....
जीवन की किताब में
कुछ शब्द उकेरना है
कुछ भाव समेटना है
कहाँ से शुरुआत करूँ
कहाँ जाकर रुकूँ
कभी लगता है भूत लिखूं
भविष्य लिखूं
क्यों ना वर्तमान लिखूं
यहाँ भी भटक जाती हूँ
लिखने लगती हूँ
बिना स्याही के
शब्द उभरते नहीं
स्याही मिली
तो शब्द ना सूझे
मिले भी तो ऐसे
कि भर आये नयनो से
झर-झर झर गए
जीवन के पन्ने
कोरे थे
कोरे ही रह गए....