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रविवार, 22 अप्रैल 2012

देहरी का दीया .... संध्या शर्मा


मैं...
सुबह सबेरे
द्वार पर
रंगोली सजाती
कभी चाँद सी
रोटियां गढ़ती
कभी बर्तनों से बतियाती
बिता देती हूँ सारा दिन
उलझी रहती हूँ
दिन भर
चौके- चूल्हे में
बिन संवरी 
उलझी लटें लेकर
फिर भी....!
साँझ ढले
जाग उठता है
देहरी का दीया 
मुझे देखकर....!

30 टिप्‍पणियां:

  1. साँझ ढले
    जाग उठता है
    देहरी का दीया
    मुझे देखकर....!

    बहुत सुंदर कविता.

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  2. साँझ ढले
    जाग उठता है
    देहरी का दीया
    मुझे देखकर....!
    वाह ...सुंदर अभिव्यक्ति

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  3. एक अनोखा रिश्ता है इस देहरी से .... अनकहे भाव प्रोज्ज्वलित हो उठते हैं

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  4. बहुत सुंदर.......................
    नारीत्व से भरपूर...........

    अनु

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  5. साँझ ढले
    जाग उठता है
    देहरी का दीया
    मुझे देखकर....!मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......

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  6. और उतर जाती है ज्योति उनमें मेरे नैनों की....

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  7. जिंदगी ऐसी ही सोच से आसन और सार्थक होती है संध्या जी

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  8. देहरी का दिया जो भीतर भी उजाला करता है बाहर भी..बहुत सुंदर भाव संयोजन !

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  9. bahut sundar...is dehri ke diye sa hi to hai nari ka jeevan ...jo nirantar jalkar prakash failati rahti hai

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  10. साँझ ढले
    जाग उठता है
    देहरी का दीया

    अगर जीवन की साँझ में भी यह प्रकाश रुपी दीया जल गया तो भी जीवन की सार्थकता बनी रहेगी ....विचारणीय पोस्ट ...!

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  11. दीया का गुण तेल है राखै मोटी बात
    दीया करता चाणना, दिया चालै साथ

    सुंदर भाव……… बाहर भीतर आलोक ।

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  12. शायद इसीलिए नारी सम्पूर्ण है ... रोज की कविता है ...

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  13. ओहो.. अति सुन्दर ..हार्दिक बधाई..

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  14. आपकी कविता के हर शब्द प्रशंसा के पात्र हैं ।धन्यवाद ।

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  15. वाह, निष्काम कर्म अमूल्य हैं!

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  16. देह का दिया भी जल उठता है तेरी आँखों की चमक देख |

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  17. वाकई ...गुणों की ही पूजा होती है ...कितने सहज सरल शब्दों में आपने बता दिया ....! बहुत सुन्दर संध्याजी ...!!!!

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  18. वाह! बहुत दिनो बाद इतनी अच्छी कविता पढ़ने को मिली ब्लॉग में। अहोभाग्य और बहुत बधाई।

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  19. इस कविता ने इतना प्रभावित किया कि और भी कविताएं पढ़ीं। आपकी छंदबद्ध कविताओं की तुलना में अतुकांत छोटी कविताएं अधिक प्रभावित करती हैं। एक कविता राजनैतिक रंग लिये हुए उपदेशात्मक है। वह अधिक अच्छी नहीं लगी।

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  20. साँझ ढले
    जाग उठता है
    देहरी का दीया
    मुझे देखकर.
    ........ सुंदर कविता।

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