मैं...
सुबह सबेरे
द्वार पर
रंगोली सजाती
कभी चाँद सी
रोटियां गढ़ती
कभी बर्तनों से बतियाती
बिता देती हूँ सारा दिन
उलझी रहती हूँ
दिन भर
चौके- चूल्हे में
बिन संवरी
उलझी लटें लेकर
फिर भी....!
साँझ ढले
जाग उठता है
देहरी का दीया
मुझे देखकर....!
इस कविता ने इतना प्रभावित किया कि और भी कविताएं पढ़ीं। आपकी छंदबद्ध कविताओं की तुलना में अतुकांत छोटी कविताएं अधिक प्रभावित करती हैं। एक कविता राजनैतिक रंग लिये हुए उपदेशात्मक है। वह अधिक अच्छी नहीं लगी।
अपनी सी कविता ... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसाँझ ढले
जवाब देंहटाएंजाग उठता है
देहरी का दीया
मुझे देखकर....!
बहुत सुंदर कविता.
साँझ ढले
जवाब देंहटाएंजाग उठता है
देहरी का दीया
मुझे देखकर....!
वाह ...सुंदर अभिव्यक्ति
एक अनोखा रिश्ता है इस देहरी से .... अनकहे भाव प्रोज्ज्वलित हो उठते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.......................
जवाब देंहटाएंनारीत्व से भरपूर...........
अनु
साँझ ढले
जवाब देंहटाएंजाग उठता है
देहरी का दीया
मुझे देखकर....!मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
और उतर जाती है ज्योति उनमें मेरे नैनों की....
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
जिंदगी ऐसी ही सोच से आसन और सार्थक होती है संध्या जी
जवाब देंहटाएंदेहरी का दिया जो भीतर भी उजाला करता है बाहर भी..बहुत सुंदर भाव संयोजन !
जवाब देंहटाएंbahut sundar...is dehri ke diye sa hi to hai nari ka jeevan ...jo nirantar jalkar prakash failati rahti hai
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंbaot khoobsurat......
जवाब देंहटाएंसाँझ ढले
जवाब देंहटाएंजाग उठता है
देहरी का दीया
अगर जीवन की साँझ में भी यह प्रकाश रुपी दीया जल गया तो भी जीवन की सार्थकता बनी रहेगी ....विचारणीय पोस्ट ...!
दीया का गुण तेल है राखै मोटी बात
जवाब देंहटाएंदीया करता चाणना, दिया चालै साथ
सुंदर भाव……… बाहर भीतर आलोक ।
sundar aur shandar post
जवाब देंहटाएंbahut sunder bhav..................
जवाब देंहटाएंशायद इसीलिए नारी सम्पूर्ण है ... रोज की कविता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव इस रचना के ...
जवाब देंहटाएंओहो.. अति सुन्दर ..हार्दिक बधाई..
जवाब देंहटाएंआपकी कविता के हर शब्द प्रशंसा के पात्र हैं ।धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह, निष्काम कर्म अमूल्य हैं!
जवाब देंहटाएंदेह का दिया भी जल उठता है तेरी आँखों की चमक देख |
जवाब देंहटाएंBahut hi khubsurat rachna Sandhya ji....
जवाब देंहटाएंBahut hi khubsurat rachna Sandhya ji....
जवाब देंहटाएंवाकई ...गुणों की ही पूजा होती है ...कितने सहज सरल शब्दों में आपने बता दिया ....! बहुत सुन्दर संध्याजी ...!!!!
जवाब देंहटाएंअति सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत दिनो बाद इतनी अच्छी कविता पढ़ने को मिली ब्लॉग में। अहोभाग्य और बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंइस कविता ने इतना प्रभावित किया कि और भी कविताएं पढ़ीं। आपकी छंदबद्ध कविताओं की तुलना में अतुकांत छोटी कविताएं अधिक प्रभावित करती हैं। एक कविता राजनैतिक रंग लिये हुए उपदेशात्मक है। वह अधिक अच्छी नहीं लगी।
जवाब देंहटाएंसाँझ ढले
जवाब देंहटाएंजाग उठता है
देहरी का दीया
मुझे देखकर.
........ सुंदर कविता।