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बुधवार, 16 नवंबर 2011

झरते पीले पात... संध्या शर्मा

अस्पष्ट सा बोलना उनका
हर वक़्त जल्दी में रहना उनका
जैसे सारे घर की चिंता सिर्फ उन्हें ही हो 
जब से रिटायर हुए हैं
बढ़ता ही जा रहा है यह सब
थोड़ी सी देर के लिए भी
किसी भी काम से घर से निकलना
तो सारे घर वालों को वापस आने की सूचना देना
आता हूँ बहू...
आता हूँ बेटा...
आता हूँ जल्दी से जाकर
नाती को स्कूल भेजने जाना हो बस स्टॉप पर
या पास के मंदिर ही क्यों न जाना हो
वही आवाज़ सुनाई पड़ती है कानो में
आता हूँ.....
पुरानी सी खटारा हो चुकी सायकल पर
अपनी कमज़ोर सी  टांगें डालते
कभी खांसते, कभी मुस्कुराते
कभी झुंझलाकर धीरे - धीरे बडबडाते
आदत सी हो गयी है इस आवाज़ की
सिर्फ मेरे ही नहीं
आस - पड़ोस के अनेक कानो को
घर वाले हों या बाहर वाले
नए पुराने
हर कानो को
और आज अचानक....?
पता लगा चले गए
बिना बताये ही किसी को भी
बहुत दूर
वह भी हमेशा- हमेशा के लिए
एक अनंत सफ़र पर
और जाते वक़्त खबर भी न लगने दी
इस कान से उस कान को भी....

    

38 टिप्‍पणियां:

  1. झरते पीले पात... आह!
    आत्मिक विवरण आँखें नम कर गया!

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  2. बहुत सुंदर,
    आपको पढना वाकई सुखद है।
    शुभकामनाएं

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  3. बिना बताये ही किसी को भी
    बहुत दूर
    वह भी हमेशा- हमेशा के लिए
    एक अनंत सफ़र पर
    और जाते वक़्त खबर भी न लगने दी
    इस कान से उस कान को भी....

    शायद तब समय भी नहीं रहता यह सब बताने का .....और व्यक्ति निश्चित होता होगा अपने जीवन सफ़र के पूरा होने के कारण....जीवन की वास्तविकता को परिभाषित करती आपकी यह रचना विचारणीय है ....!

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  4. क्या दुर्लभ संयोग है मैंने अभी ही आपकी रचना सी चरित्र को महायात्रा पर जाते देखा जो मेरे घर के सामने रहा करते थे .अभी तक उन्ही में खोयी हूँ...

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  5. चलता क्रम टूट जाए तो एक अजीब सा सन्नाटा छा जाता है....

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  6. दिल को छू गयी ये पोस्ट........जाना तो सभी को है एक दिन |

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  7. बिल्‍कुल सच कहा ...भावमय करती शब्‍द रचना ।

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  8. उफ़ ……………बेहद संवेदनशील मगर यथार्थ को दर्शाती एक शानदार प्रस्तुति।

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  9. बहुत ही मार्मिक कविता।

    सादर

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  10. जीवन का सत्य व्यक्त करती मार्मिक रचना



    नीरज

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  11. एक मार्मिक रचना... जानेवाले यूं ही बिना बताए चले जाते हैं और भनक भी नहीं लगने देते.... और हमेशा के लिए एक टीस दे जाते हैं

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  12. यही तो जीवन है...
    यूं तो बरसों का सोचते हैं और पल भर की खबर भी नहीं रहती।
    सुंदर.... भावभरी रचना।

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  13. भावमय करती एक मार्मिक रचना..

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  14. aata hun kah kar jana shayad swayam ko aashwast karna tha ki sab mera intzar karte hain.

    sunder, samvedansheel rachna.

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  15. बहुत कुछ पठनीय है यहाँ आपके ब्लॉग पर-. लगता है इस अंजुमन में आना होगा बार बार.। धन्यवाद !

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  16. जी अमृताजी आपकी ही तरह इस चरित्र को मैंने भी देखा है.जीवन की वास्तविकता है यह...

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  17. मार्मिक रचना,जीवन का सत्य व्यक्त करती

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  18. बहुत मार्मिक,हृदयस्पर्शी प्रस्तुति है आपकी,संध्या जी.
    वृद्धावस्था का करुण चित्रण व
    मृत्यु की निर्ममता को अभिव्यक्त करती.

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  19. जीवन की रीत को मार्मिक शब्दों में बाँधा है आपने ...
    बुजुर्गों की कमी तो हमेशा खलती है ...

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  20. अत्यंत मार्मिक रचना संध्या जी ! हर व्यक्ति की जीवनगाथा को सहज सरल शब्दों में कितनी सशक्त अभिव्यक्ति दी है ! अद्भुत रचना ! शुभकामनायें स्वीकार करें !

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  21. आपके पोस्ट पर आना बहुत बढ़िया लगा ! मेरे पोस्ट पर आपका निमंत्रण है । बेहतरीन प्रस्तुति!

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  22. दिल को छूने वाली मार्मिक रचना सुंदर पोस्ट ...
    मेरे पोस्ट में आमंत्रण है,...

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  23. मर्मस्पर्शी रचना ....
    भाव, मन को आंदोलित कर गए..

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  24. बूढी होती गात
    झरते पीले पात
    यही सांची बात

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  25. बेहद ख़ूबसूरत और मर्मस्पर्शी रचना! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

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  26. पुरानी सी खटारा हो चुकी सायकल पर
    अपनी कमज़ोर सी टांगें डालते
    कभी खांसते, कभी मुस्कुराते
    गहन शब्द जाल में जिस सार्थकता से उकरा है वह इस कविता की सुंदरता को और बढाती है!!

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  27. बेहद भावपूर्ण रचना ....दिल को छू गई !
    मेरी नई पोस्ट देखें !

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  28. बहुत मार्मिक और भावपूर्ण प्रस्तुति...आँखें नम कर गयी...

    http://batenkuchhdilkee.blogspot.com/2011/11/blog-post.html

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