तपती दोपहर की,
ठहरी हुई तपिश में,
एक टुकड़ा बादल का,
तुम्हारे नयनो में घुमड़ने लगा है, बरस रहा है, मेघ तुम्हारे नेह का,
ठंडी अमृत बूँद सा, टूट-टूट कर
मेरे मन की कच्ची धरा पर, मुझे भिगो रहा है , और शर्मा कर छुपा लिया है, मैंने अपने आप को,
धानी सी चूनर में,
धरती की तरह....
बहुत ही सुन्दर और प्यारी कविता .. पढकर बहुत ही अच्छा लगा .. आपको बधाई वैसे मैं भी नागपुर से ही हूँ ... लक्ष्मीनगर में रहता था ..अब हैदराबाद में हूँ .. आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
सावन की बूंदे ,भीषण गर्मी में तपती धरती को प्रेम से अभिसिंचित करती है .......बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबरस रहा है,
जवाब देंहटाएंमेघ तुम्हारे नेह का,
ठंडी अमृत बूँद सा,
बिल्कुल सच कहा है आपने प्रत्येक पंक्ति में ... बेहतरीन प्रस्तुति....संध्या जी
सावन की रिमझीम फुहारों सी सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंkhoobsurat bhaw
जवाब देंहटाएंमैंने अपने आप को,
जवाब देंहटाएंधानी सी चूनर में,
धरती की तरह....
वाह बहुत ही भीनी भीनी रचना।
रिम झिम रिम झिम और बारिश की फुहार की तरह आपकी ये रचना... भावनाओं से ओत प्रोत ये कविता मन मोहती है....
जवाब देंहटाएंआकर्षण
सावन के मौसम में सुन्दर कविता....वाह...
जवाब देंहटाएं@मेघ तुम्हारे नेह का..
जवाब देंहटाएंउम्दा बिंब है। सुंदर कविता के लिए आभार
wah bahut sunder kavita.
जवाब देंहटाएंतपती दोपहर की,
जवाब देंहटाएंठहरी हुई तपिश में,
एक टुकड़ा बादल का,
तुम्हारे नयनो में घुमड़ने लगा है,
bahut hi pyari rachna....
jai hind jai bharat
सावन के मौसम और ये सुन्दर कविता...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह। बेहतर भाव से सजी सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूब...सुन्दर दृश्य उभर रहे हैं...
जवाब देंहटाएंsawan ki khubsurat rachna...
जवाब देंहटाएंबरस रहा है,
जवाब देंहटाएंमेघ तुम्हारे नेह का,
ठंडी अमृत बूंद-सा,
टूट-टूट कर
मेरे मन की कच्ची धरा पर,
मुझे भिगो रहा है ,
आहाऽऽह्… ! बरसात की सुहावनी फुहारों-सी मनभावन रचना के लिए हार्दिक आभार स्वीकार करें ।
आप बहुत श्रेष्ठ कविताएं लिखती हैं … आभार !
बहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएंक्या कहने
सुंदर ....बहुत सुंदर भाव लिए रचना
जवाब देंहटाएंshringar ras se sarabor aapki kavita....bahut badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत लग रहा है सबकुछ ......
जवाब देंहटाएंबरस रहा है,
जवाब देंहटाएंमेघ तुम्हारे नेह का,
ठंडी अमृत बूँद सा,
बहुत खूबसूरत भाव मयी रचना
बहुत खूबसूरत...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंगहरे भाव।
शुभकामनाएं आपको........
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर
तृप्ति
बहुत ही सुन्दर और प्यारी कविता .. पढकर बहुत ही अच्छा लगा .. आपको बधाई
जवाब देंहटाएंवैसे मैं भी नागपुर से ही हूँ ... लक्ष्मीनगर में रहता था ..अब हैदराबाद में हूँ ..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
sundar pyaar ki bundon se bhigtaa tanman!!
जवाब देंहटाएंवाह !!!
जवाब देंहटाएंसावन सी मनभावन रचना...
संयोग की जादुई अभिव्यक्ति
बहुत मीठी सी ... सौंधी मिट्टी की सुगंध लिए ... प्यारी सी राक्स्हना है ...
जवाब देंहटाएंमुझे भिगो रहा है ,
जवाब देंहटाएंऔर शर्मा कर छुपा लिया है,
मैंने अपने आप को,
धानी सी चूनर में,
धरती की तरह....
वाह बहुत सुंदर।