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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

BHOOL

"भूल "
सभी तो करते हैं, इसलिए
मैंने भी प्रेम करके देखा
सब तो खाते हैं कसमे, इसलिए
मैंने भी कसमें खायीं
गाते तो सब हैं, इसलिए    
मैंने भी एक गीत गाकर देखा
दुःख तो सबको होता है, इसलिए
मैंने भी रोकर देखा
भूल तो सभी जाते हैं, इसलिए
मैंने भी भुलाकर देखा
पर किससे कहूँ कैसे कहूँ,
ये रीत ज़ग की मुझे न भाई
और मैंने भुला दी ज़ग की हर रीत, इसलिए
दुनिया ने  मुझे  दीवाना कहा........
वही भूल हुई मुझसे 
जो दुनिया नहीं करती .......  
  

15 टिप्‍पणियां:

  1. Man ki komal bhawnaon se upaji sundar kavita.
    Makar sankranti ki Hardik shubhkamnayen.
    -Gyanchand Marmagya

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  2. आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं

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  3. aap achchhe rachnakaron ki rachnaayein bhi padhiye...to aapke ye kadam aur adhik shaktishali honge

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  4. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..मन को छू लेती है..

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  5. और मैंने भुला दी ज़ग की हर रीत, इसलिए
    दुनिया ने मुझे दीवाना कहा........
    यह दुनिया है ..और यहाँ पर हर किसी का अपना मत है ..और प्रीत चाहे किसी से भी हो समर्पण मांगती है ...

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  6. बहुत भावनात्मक और दिल को छूने वाली पंक्तियाँ है इस कविता की ...सार्थक लेखन का उत्कृष्ट नमूना ...गजब ढा गयी ...आपकी प्रस्तुति .....शुक्रिया

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  7. ज्ञानचंद्र मर्मज्ञ जी, संजय भास्करजी, अनिल कान्त जी, कैलाश शर्मा जी, केवल राम जी आप सबका ह्रदय से आभार.. आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहिये ताकि और भी प्रगति कर पाऊं ....आप सबका धन्यवाद

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  8. भूल तो सभी जाते हैं, इसलिए
    मैंने भी भुलाकर देखा
    पर किससे कहूँ कैसे कहूँ,
    ये रीत ज़ग की मुझे न भाई
    और मैंने भुला दी ज़ग की हर रीत, इसलिए
    दुनिया ने मुझे दीवाना कहा........
    वही भूल हुई मुझसे
    जो दुनिया नहीं करती .......

    dil ke behad karib se gujri aapki rachna waah
    http://amrendra-shukla.blogspot.com/

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  9. अमरेन्द्र्जी, हरमन जी आपका स्वागत है ब्लॉग पर और इतने सुंदर से कमेन्ट के लिए आभार.....

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  10. सभी तो करते हैं, इसलिए
    मैंने भी प्रेम करके देखा

    .............bilkul sahi kiya prem kiye bina pata hi nahi chalta hi prem kya hota hai

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  11. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति| मन को छू गयी है|

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  12. प्रेम के तो अनेक रूप है माँ-बेटे, भाई-बहन, पति-पत्नी इ. पर मेरी रचना में सन्देश है, हर रिश्ते को जोड़ने के बाद उसे न भूलने का बल्कि निभाने का ........
    भूल तो सभी जाते हैं, इसलिए
    मैंने भी भुलाकर देखा
    पर किससे कहूँ कैसे कहूँ,
    ये रीत ज़ग की मुझे न भाई
    और मैंने भुला दी ज़ग की हर रीत, इसलिए
    दुनिया ने मुझे दीवाना कहा........
    संजय भास्करजी एवं @ PATALI THE VILLAGE आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.......

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  13. भूल तो सभी जाते हैं, इसलिए
    मैंने भी भुलाकर देखा
    पर किससे कहूँ कैसे कहूँ,
    ये रीत ज़ग की मुझे न भाई
    और मैंने भुला दी ज़ग की हर रीत, इसलिए
    दुनिया ने मुझे दीवाना कहा.......

    विचारों में दृढ़ता कोमलता का अनूठा संगम कविता की विशेषता है

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  14. कुंवर कुसुमेश जी ब्लॉग पर आपका बहुत - बहुत स्वागत है... यू ही प्रोत्साहन बनाये रखिये...... आभार

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