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सोमवार, 20 दिसंबर 2010

"KHWAAB" ख़्वाब

ख़्वाब ...
बंद पलकों में,
सजते हैं,
मुस्कुराते हैं....
खुली आँखें तो,
टूटते हैं,
बिखर जाते हैं......  

5 टिप्‍पणियां:

  1. कम शब्दों में बढ़ी बात कह दी आपने .........संध्या जी

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  2. खवाब....it doesnot fufills...//
    it comes through heart and exits through tears/

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  3. इसलिए तो इन्हें हम ख्वाब कहते हैं, एक पूरा हो भी गया तो हम दूसरा देखने लगते हैं, और सारे ख्वाब तो पूरे नहीं हो सकते हैं न,
    आप सभी का स्वागत है, इस ब्लॉग पर और हाँ आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद.....

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