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शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2015

मेरा चाँद ...

मेरा चांद समझता है
मेरे चूड़ी, बिछुए, झुमके
पायल की रुनझुन बोली
सुन लेता है, वह सब
जो मुझे कहना तो था
लेकिन किसीसे ना बोली
पढ़ लेता है मेरी
आँखों की भाषा
हरपल बिखेरता रहता है
स्नेह की स्निग्ध चाँदनी
अमृत बरसाता है
अहसास दिलाता है
जीवन की धुरी हूँ मैं
अधूरा है वह मेरे बिना
कभी आधा नही होता
मेरा चाँद .....
मेरी खुशी में पूनम सा
जरा सी नाराजगी से
अमावस भले हो
वह चमकता चांद है
मेरी दुनिया के आसमान का
मैं शीतल किरणों में लिपटी
उसकी रौशनी से रौशन
धरती की तरह ..
 ('करवा चौथ' के मंगल पावनपर्व पर हार्दिक शुभकामनायें ....)

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 31 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. चाँद है तो कभी पूर्णिमा कभी अमावस आएगी ही...सुंदर भाव..

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  3. कितनी खूबसूरती से चाँद को एक एहसास, एक साथी बना दिया है। हर पंक्ति में इतना अपनापन है कि लगता है जैसे चाँद सच में उसके मन की हर बात समझता हो। “जीवन की धुरी हूँ मैं, अधूरा है वह मेरे बिना”, क्या कमाल की बात कही है! इसमें प्यार, आत्मविश्वास और नारी की गहराई एक साथ झलकती है।

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