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मंगलवार, 21 अगस्त 2012

चिरनिद्रा से वापसी...संध्या शर्मा

आज अचानक असमय सो गई 
सोते हुए स्वपन में जाग उठी
उठते ही कविता की कॉपी याद आई
बैचेनी से इधर-उधर ढूँढने लगी 
अचानक पाँव तले पानी महसूस हुआ
इतना पानी देखकर समझ गई
मेरी काव्य सरिता में बाढ़ आई  
देखते - देखते उसमे डूबने लगी
तैरने के लिए कल्पना की डोर बांधी
विचारों का मज़बूत सहारा लिया
शब्दों के पुल खोजने लगी
उन्ही तरंगो में कल्पना की
सुन्दर सजीली नाव दिखी
उमंगों की एक छलांग में
उस नाव पर सवार हो गई
उसी नाव में दिखे डायरी के पन्ने
कुछ पूरे और कुछ अधगीले
कुछ सीधे कुछ मुड़े-तुड़े से
जल्दी -जल्दी उन्हें समेटने लगी
एक पन्ना हाथ से छूटा उड़ने लगा
अधीरता से उसे संभाला थामा
हाथ आया तो पढने का मन किया
जैसे ही उसे खोलकर देखा
आश्चर्य से आँखे खुल गईं
मैं गहरी नींद से जाग गई  
म्रत्यु को साधे जीवन से बांधे  
स्वप्न से बाहर यथार्थ की दुनिया में
मुझे ले आये खींचकर मेरे ही शब्द  
बताऊँ वहां क्या लिखा था?
 "चिरनिद्रा से वापसी"

34 टिप्‍पणियां:

  1. वाह.......
    कल्पनाओं के सागर में गोते लगा कर लौटना सुखद लगा......

    सस्नेह.
    अनु

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  2. म्रत्यु को साधे जीवन से बांधे
    स्वप्न से बाहर यथार्थ की दुनिया में
    मुझे ले आये खींचकर मेरे ही शब्द
    बताऊँ वहां क्या लिखा था?
    "चिरनिद्रा से वापसी"

    खुबसुरत एहसास.

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  3. वाह: कल्पना का गहन सागर...सुन्दर..

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  4. चिरनिद्रा से वापसी बहुत सुखद अनुभूति है..
    बहुत सुन्दर रचना..
    :-)

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  5. वाह .. कल्पनाएं भी कहाँ ले जाती हैं इंसान को ...
    इस चिरनिंद्रा से जागना भी पूर्ण होना इक रचना का होता है ...

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  6. वाह.....बेहद खुबसूरत।

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  7. सुंदर स्वप्न..और सुंदर चित्रण !

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  8. स्वप्न व दिवास्वप्न बेहतरीन ही नहीं अद्भुत खुबसूरत

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  9. सुंदर कविता |कल्पनाशीलता का बेजोड़ नमूना |आभार

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  10. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-08 -2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में .... मेरी पसंद .

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  11. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
    आशा

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  12. आपकी पोस्ट आज 23/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें

    चर्चा - 980 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  13. भावमय करते शब्‍दों का संगम ... आभार

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  14. कल्पना में कवि मन कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है ...सुंदर प्रस्तुति

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  15. ये स्वप्नशब्द.... निःशब्द !
    बेहतरीन प्रस्तुति !
    आभार !

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  16. शब्दै मारा गिर पड़ा शब्दै छोड़ा राज
    जिन जिन शब्द विवेकिया तिनका सरिगौ काज

    जब अवचेतन जागता है तो अनोखे लोक की सैर करता है। अद्भुत अनुभव होता है इस सैर का। गुंगे के गुड़ जैसा। शब्दों में बांध पाना कठिन होता है। शब्द ही चिरनिद्रा से जगाते हैं। शब्द ध्वनि सुनना ही चिरनिद्रा से वापसी है। उम्दा बिंबों के साथ सार्थक भावाभिव्यक्ति

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  17. कल्पना के सागर में डूबते उतराते ही शब्द चुन कर कलम लिख डालती है कोई कविता बहुत सुन्दर लगी आपकी कल्पना और अंतिम पक्तियां तो लाजबाब हैं

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  18. स्वप्न से बाहर यथार्थ की दुनिया में
    मुझे ले आये खींचकर मेरे ही शब्द
    बताऊँ वहां क्या लिखा था?
    "चिरनिद्रा से वापसी"

    ....बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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  19. इतनी खूबसूरत कल्पना ....अधूरे ख्याब अधूरे से शब्द ..इस आशा के साथ कि कोई दिन तो होगा जब ये पूर्ण होंगे ...आभार

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  20. बहुत ही प्रशंसनीय कविता। मेरे ब्लॉग " प्रेम सरोवर" के नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  21. कविता के भाव में गहनता झलक रही है।

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  22. काव्य सरिता हमें भी बहा ले गयी..

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