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कारवां जीवन का चलता यूं
दिन ढलता, रात, फ़िर सुबह
झट उनींदी सी आँखें मलते
समेटकर बिखरे-बिखरे बाल
रोज़ जिस वक़्त जागते सब
साड़ी के पल्लू से कमर कसे
चल देती रचने एक अध्याय
जीत लेती रोजमर्रा की जंग
जारी है ज़िन्दगी का सफर
ख़ुशी से अपनी धुन में मस्त
कुछ खट्टे कुछ मीठे से पल
काव्य हो जाते शब्दों में ढल
कभी कविता तो कभी नज़म
हर दिन एक जीत सा जीवन
गुज़रा दिन बन जाता पिछला
आने वाली सुबह है नया साल ...