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गुरुवार, 19 जून 2014

पहली फुहार...


आई बरखा
गूँजने लगा
बूंदों का संगीत
भीगने लगा
अलसाया मौसम
पहली फुहार के
स्वागत को आतुर
पंख पसारे
मन मयूर
धुल गई
पत्ती-पत्ती
खिल गई
डाली-डाली
कोरी धरती पर
लिखने वाली है
फिर से हरियाली .....

12 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर....
    धुली धुली, खिली खिली कविता ..
    सस्नेह
    अनु

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  2. खिल गई
    डाली-डाली
    कोरी धरती पर
    लिखने वाली है
    फिर से हरियाली ..
    .....क्या बात है एकदम सटीक चित्र खींचा है दी जबरदस्त.....क्या बात है!!

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  3. बारिश के स्वागत में सुन्दर कविता ..

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  4. बारिश की पहली फ़ुहार अलसाए झुलसे मन के साथ प्रकृति को भी जीवन देती है। हरियाली प्राणी में नव प्राणों का संचार करती है। कम शब्दों में काफ़ी कुछ कहती है आपकी कविता। आभार

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  5. आपकी रचना ने इन बूंदों में घुलकर तृप्ति पाने की आकांक्षा जगा दी है.

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  6. बहुत मनभावन प्रस्तुति...

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  7. पहली फुहार के इस आनद को बाखूबी लिखा है ... सुन्दर ...

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  8. बहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको !

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  9. और तन-मन भी हो गया हरा-हरा..

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