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शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

सपनों के लिए ....!!!



सुबह तो कबकी हो गई
सूरज चढ़कर ढल चुका
रात भर भटकता रहा
सपनों की दुनिया में
तड़के ही सो सका है
रात जब लेटा था
तो ऐसे लग रहा था
जैसे कोई सड़क पर पड़ा
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति हो
ऐसे तो प्रतीत होता है
एक समूचा इंसान है
लेकिन सहानुभूति के
सूक्ष्मदर्शी निरीक्षण से
साफ़ दिखाई देता है
यह आदमी नहीं है
ये तो एक सड़क है
जिस पर बेतरतीब बिखरी हैं
धूल और गिट्टियां
रौंदकर गुजर जाते जिसे
आते-जाते वाहन
थरथरा उठता है
उसका रोम-रोम
रह जाता है तो
सिर्फ  ……।
तेज़ रफ़्तार से उठता
हाहाकार......... !
ह्रदय को झकझोरता
बावजूद इसके सो गया वह??
चिड़ियों के कलरव से क्या होगा
ढेर सारे टूटे सपनों का बोझ
अपने सर पर लादे
जब नींद खुली थी तो न सपने थे
न जीवन के वे पल
जो बीत गए उन्हें देखने में
जो जागृत होगा
वो सपने कैसे देखेगा
और सपने देखने के लिए
नींद का होना जरुरी होता है न..... ?
अभी तक सोया है वह.......

10 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार चित्रण हैम जैसा मनोभाव रखते हैं हमें वह वैसी ही प्रतीत जाती है

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  2. और सपने देखने के लिए
    नींद का होना जरुरी होता है न..... ?
    अभी तक सोया है वह.......
    उम्र बीत गयी देखते हुए सपने...और सच का कभी सामना ही न हुआ...बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता

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  3. सच से सामना सच है या सपना ... माया है ये जीवन ... गहन व्हिचार को प्रेरित करती पंक्तियाँ ..
    नव वर्ष मंगलमय हो ...

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  4. बहुत बढ़िया भावपूर्णप्रस्तुति...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

    नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है

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