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शनिवार, 7 सितंबर 2013

मंज़िल ...संध्या शर्मा


मैंने तुम्हे कभी नहीं लिखा
तुम खुद लिखते गए
शब्द - शब्द
बनते गए गीत
जन्मों की प्रीत का
अहसास जीत का
उत्साह जीने का
जिसने मुझे 
हौसला दिया
आगे बढ़ते जाना है
एक कसम जिसे
हमेशा निभाना है
रुकना नहीं
चलते जाना है
हारना नहीं है
जीत जाना है
मैंने तय किया है
इस गीत को
गुनगुनाना है

यकीं न हो तो तुम खुद सुन लेना ……

17 टिप्‍पणियां:

  1. चलना ही जिन्दगी है..सुन्दर रचना..

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  2. बहुत सुन्दर.....
    जीवन का सबसे सुरीला संगीत.......

    सस्नेह
    अनु

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  3. एक कसम जिसे
    हमेशा निभाना है
    रुकना नहीं
    चलते जाना है

    खूबसूरत जज़्बात

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  4. शब्दों का और आपका साथ हूँ ही बना रहें ...

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार-8/09/2013 को
    समाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





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  6. मैंने तय किया है
    इस गीत को
    गुनगुनाना है

    बहुत खूब ..

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  7. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती।

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  8. किसी को लिखने की बजाए उसको जीना ... उसको गुनगुनाना ... उसको जीवन बनाना ही सच्चा जीना होता है ...

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  9. बहुत सुन्दर भाव....
    जब भी तेरा नाम लिखा एक गीत बन गया .. :)

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  10. बहुत सुंदर, बहुत प्यारी कविता.

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