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गुरुवार, 6 जून 2013

व्याकुल पीड़ा ... संध्या शर्मा


....
कांक्रीट के जंगल में
अकेला खड़ा वटवृक्ष
भयभीत है...?
व्याकुल है आज
चौंक उठता है
हर आहट से
जबकि जोड़ रखे हैं
कितने रिश्ते - नाते
सांझ के धुंधलके में
दूर आसमान में
टिमटिमाते तारे
शांत हवा के झोंके में
गूंजता अनहद नाद
पाकर धरती का
कोमल स्पर्श
ना जाने क्यूँ
छलक उठे हैं
उसके मौन नयन...

27 टिप्‍पणियां:

  1. कांक्रीट के जंगल में
    अकेला खड़ा वटवृक्ष
    भयभीत है...?
    व्याकुल है आज
    चौंक उठता है
    हर आहट से
    प्रकृति का अद्भुत मानवीकरण किया है आपने गजब

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  2. मौन नयन और छलके आंसू
    नीर बहे , न छिपाये आंसूं !

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  3. बहुत ही अर्थपूर्ण. सुंदर प्रस्तुति.

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  4. वृक्ष की पीड़ा को गहनता से महसूस किया

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  5. मार्मिक रचना..जाने कब अकेला वटवृक्ष भी नहीं बचे..

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  6. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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    1. हमारी पोस्ट का लिंक कहीं भी लगाना वर्जित है, इसलिए हटा दें

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  7. कांक्रीट के जंगल में
    अकेला खड़ा वटवृक्ष
    भयभीत है...?
    sachmuch...

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. पर्यावरणवादी कविता। आज कल लोग पर्यावरण को लेकर बेफिक्र है और उसमें जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप भी कर रहे हैं। हो सकता है आपकी कविता सबकी आंखें खोल दें।

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  11. अकेला वट ? नई जड़े कहाँ रोपेगा,सिमटते-सिमटते कितना जी पायेगा .कंक्रीट की त्रासदी कब तक झेल पाएगा !

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  12. बहुत खूब..,उम्दा प्रस्तुति

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  13. डरता है वो इन्सान के बनाए इन कंक्रीट के जंगलों से ...
    भावमय प्रस्तुति ...

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  14. काश वटवृक्ष की तरह इंसान भी अच्छे बुरे के बारे में सोच सकता
    जब वृक्ष बिना भेद-भाव के अपना हर कुछ लुटाने को तैयार है तो इंसान क्यों सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए उसका नाश करने पर तुला हुआ है

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  15. बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

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  16. दर्द को परिभाषित करने में सफल रचना |

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  17. वृक्ष की पीड़ा को महसूस किया शानदार रचना...

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