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शनिवार, 4 मई 2013

जय हिन्द.... संध्या शर्मा

टूट चुका बाँध  
तबाही मची है
सब कुछ बह गया
कब तक सहोगे
अन्याय - अत्याचार
स्वाभिमान पर प्रहार
प्रतीक्षा कैसी??? 


पानी के बुलबुलों के आगे
तुम गंगा की जलधार
क्यों न तोड़ दो???
अपने धैर्य का बाँध
बह जाने दो टूटकर
एक बची-खुची सी
सिंद्धांत विहीन दीवार!!!!

25 टिप्‍पणियां:

  1. "एक बची खुची सी सिद्धांत विहीन दीवार" तोड़ने की उम्दा कोशिश. पढकर अच्छा लगा.

    -अभिजित (Reflections)

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  2. कब तक सहोगे
    अन्याय - अत्याचार
    स्वाभिमान पर प्रहार
    प्रतीक्षा कैसी???

    बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,


    RECENT POST: दीदार होता है,

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  3. तुम गंगा की जलधार
    क्यों न तोड़ दो???
    .......सही बात बेहतरीन शब्द चयन और बहुत ही सशक्त भावाभिव्यक्ति

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  4. अन्याय सहना आखिर कब तक ??! सुंदर प्रस्तुति .

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  5. सुंदर अभिव्‍यक्ति ..
    प्रतीक्षा मेंही बीतता जा रहा है समय !!

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  6. तुम गंगा की जलधार
    क्यों न तोड़ दो???
    ये सवाल हर मन को झकझोर रहा .... बेहद सार्थक

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  7. एक सत्य का समाधान खोजती पोस्ट

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  8. अब धैर्य का बाँध टूट रहा है .. सार्थक प्रस्तुति .

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  9. कब तक सहोगे
    अन्याय - अत्याचार
    स्वाभिमान पर प्रहार
    प्रतीक्षा कैसी???

    अन्याय का विरोध करने के लिये इन्तेज़ार करने की आवश्यकता नहीं.
    सार्थक सन्देश.

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  10. वह दिन शीघ्र आएगा संध्या जी ..
    मंगल कामनाएं आपके लिए !

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  11. समय देख कर तो लगता है ये धैर्य का बाँध जल्द ही धाराशायी होकर एक नयी पहल की शुरुआत करेगा

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  12. बस इंतज़ार तो उसी का है ... पता नहीं कब टूटने वाला है ये बाँध ...

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  13. जब हर घर से एक शहीद होने के लिए आगे आयेगा जैसे पञ्च प्यारे आगे आया थे.और वो होगा संध्या जी !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post'वनफूल'

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  14. सुन्दर शब्द चयन और रचना |
    आशा

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  15. बदलाव कब होगा ? कोई नहीं जानता ....

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  16. hook ko lalkaar banne mein deri kaisi...bahut sundar..sandhya ji !

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