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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

"युगे-युगे"... संध्या शर्मा

मिथ्या दंभ में चूर
स्वयं को श्रेष्ठ घोषित कर
कोई श्रेष्ठ नहीं हो जाता
निर्लज्जता का प्रदर्शन
निशानी है बुद्धुत्व की
सूर्य को क्या जरुरत
दीपक के प्रकाश की
वह तो स्वयं प्रकाशित है
फ़िर, प्रतिस्पर्धा कैसी?
है हिम्मत ....?
तो बन जाओ उसकी तरह
छूकर दिखाओ ऊँचाइयों को
जगमगाओ उसकी तरह
जिस दिन ऐसा होगा
स्वयं झुक जाओगे
फलाच्छादित वृक्ष जैसे
चमकोगे आकाश में
तारों बीच चाँद की तरह
कीर्ति जगमगाएगी
"युगे युगे" दसों दिशाओं में
यही है मृत्यु लोक में
वैतरणी से तरने का मार्ग....

30 टिप्‍पणियां:

  1. श्रेष्ठ होने के लिए गहरे डूबना होता है जीवन सागर में.....किनारे बैठे या उथले पानी में मोती नहीं मिला करते...
    सुन्दर जीवन दर्शन.....
    सस्नेह
    अनु

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  2. वह तो स्वयं प्रकाशित है
    फ़िर, प्रतिस्पर्धा कैसी?
    है हिम्मत ....?

    जोश दिलातीं सुंदर पंक्तियाँ...आभार!

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  3. श्रेष्ठ होने के लिए स्वयं को दूसरों से ऊंचा उठाना होता है ... बहुत सटीक और सार्थक रचना

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  4. अखंड सत्य दीदी इसी सत्य का बोध अगर हो जाए तो फिर इस दुनिया में इतनी मारामारी क्यूँ होती. एक दूसरे से आगे बढ़ने और अच्छे होने की चाह में इंसान क्या क्या कर जाता है. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकारें.

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  5. मृत्‍यु लोक में वैतरणी का पाठ पढ़ाता यह गद्य गहन एवं विचारणीय है।

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  6. है हिम्मत ....?
    तो बन जाओ उसकी तरह
    छूकर दिखाओ ऊँचाइयों को
    जगमगाओ उसकी तरह
    जिस दिन ऐसा होगा
    स्वयं झुक जाओगे
    फलाच्छादित वृक्ष जैसे
    चमकोगे आकाश में
    तारों बीच चाँद की तरह
    कीर्ति जगमगाएगी
    बेहद सार्थक व सशक्‍त भाव ...

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  7. जिस दिन ऐसा होगा
    स्वयं झुक जाओगे
    फलाच्छादित वृक्ष जैसे
    चमकोगे आकाश में
    तारों बीच चाँद की तरह
    कीर्ति जगमगाएगी
    "युगे युगे" दसों दिशाओं में
    यही है मृत्यु लोक में
    वैतरणी से तरने का मार्ग.

    सशक्त रचना आह्वान करती प्रणाम स्वीकारें इस शानदार प्रस्तुति के लिए ...

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  8. आपने बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुत की है, लेकिन क्या करें आज कल निर्लज्जता का प्रदर्शन
    निशानी हो गयी है बुद्धत्व कि :)

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  9. जीवन के सही अर्थों से साक्षात्कार करवाती आपकी रचना

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  10. अपने को श्रेष्ठ घोषित करने से कोई श्रेष्ठ नही हो जाता,बहुत ही बेहतरीन रचना.

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  11. जिस दिन ऐसा होगा
    स्वयं झुक जाओगे
    फलाच्छादित वृक्ष जैसे
    चमकोगे आकाश में
    तारों बीच चाँद की तरह
    कीर्ति जगमगाएगी
    "युगे युगे" दसों दिशाओं में
    यही है मृत्यु लोक में
    वैतरणी से तरने का मार्ग -बहुत भावपूर्ण खुबसूरत रचना .
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  12. असीम प्रेरणा से सजी एक सुन्दर रचना....

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  13. "युगे युगे" दसों दिशाओं में
    यही है मृत्यु लोक में
    वैतरणी से तरने का मार्ग....behtarin lines! thanks for posting..

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  14. "युगे युगे" दसों दिशाओं में
    यही है मृत्यु लोक में
    वैतरणी से तरने का मार्ग..
    ...गागर में सागर ..बहुत सुन्दर संध्याजी

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  15. मार्क तो यही है पर बीच की माया भी तो बहुत है ... भटकाव के लिए ...

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  16. बहुत सुन्दर बात कही है...
    बहुत ही बेहतरीन प्रेरणादायी रचना...
    :-)

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  17. वाह! बहुत प्रेरक उत्कृष्ट प्रस्तुति...

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  18. मनुष्य के भीतरी आवाज को आवाहन देने वाली कविता 'युगे-युगे' है। आधुनिक जमाने में मनुष्य अपने प्रकाश को खो चुका है उसे कृत्रिम दिए के प्रकाश की जरूरत महसूस हो रही है ऐसे में आपकी कविता उसके भीतरी सूरज को दुबारा प्रज्वलित कर रही है।
    drvtshinde.biogspot.com

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  19. मिथ्या दंभ में चूर
    स्वयं को श्रेष्ठ घोषित कर
    कोई श्रेष्ठ नहीं हो जाता.

    सचेत करती संवेदनशील प्रस्तुति.

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  20. "युगे युगे" दसों दिशाओं में
    यही है मृत्यु लोक में
    वैतरणी से तरने का मार्ग.

    ............आह्वान करती शानदार प्रस्तुति !!!!

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  21. बड़े होने से ज्यादा जरुरी है विनम्र होना
    सुन्दर रचना
    साभार !

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