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मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

नवा - जूना...संध्या शर्मा

अरसे से 
ठसाठस भरा
अस्त-व्यस्त था
मन का  कमरा
आज समय मिला
नए - पुराने 

विचारों- भावों
रिश्ते-नातों
यादों-अहसासों को
झाड़-पोंछ
करीने से सहेजा
कुछ टीसती यादों को
बुहार बाहर किया 
खाली पड़े फूलदान में 

महकते अहसासों को सजाया 
बहुत जगह बन गई है
नयी उलझनों-सुलझनो को
दो पल सुस्ताने के लिए...

15 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लगता है रीअरेन्जमेन्ट...

    सुन्दर!!!!

    अनु

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  2. bahut hi badhia....
    meri is website ko bhi dekhiyega
    http://www.theunpredictablegame.org/

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  3. बीच-बीच में ऐसा करना अच्छा है..सुंदर भाव...

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  4. सुस्ताने का पर्य़ाप्त वक्त दे सकेगा उलझनों का खाली कूडादान...
    अच्छे विचार संयोजन पद्य में...

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  5. बहुत ज़रूरी है समय समय पर अहसासों पर जमी धूल झाड़ना..बहुत सुन्दर..

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  6. यादों-अहसासों को
    झाड़-पोंछ
    करीने से सहेजा
    कुछ टीसती यादों को
    बुहार बाहर किया
    खाली पड़े फूलदान में
    महकते अहसासों को सजाया------

    जीवन में भोगे हुये यथार्थ की गहन अनुभूति
    मन को आंदोलित करती रचना
    बधाई

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  7. अच्छे भाव हैं, सुन्दर प्रस्तुति.

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  8. बहुत ही सुन्दर भाव लिए बेहतरीन कविता.

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  9. मन का कमरा,
    बहुत सुन्दर भाव.
    आभार

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