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शनिवार, 21 जुलाई 2012

मुक्ति...?---- संध्या शर्मा


जन्म से आज तक 
हर नाता हर रिश्ता
मांगता रहा मुझसे
बीत गया जीवन
पूरी करते अपेक्षा
ख़ुशी से देह छोड़
बनना पड़ा शिला
धूप हवा बारिश
सब झेलकर भी
अपेक्षा के भार से
मुक्त रहा युगों तक
अचानक एक दिन
खंडित किया मुझे
ले आये उठाकर
रहा अब भी पत्थर
लेकिन मंदिर का
तब से कतार है
मेरे समक्ष लम्बी
दिन - रात मांगते
लोग कुछ न कुछ
फिर दबाने लगे
अपेक्षाओं तले
अपेक्षाओं तले दबकर
फूट जाऊँगा एक दिन
उड़ जाऊंगा माटी बन
दसों दिशाओं में
समाप्त हो जायेगा
मेरा अस्तित्व
उड़ेगा धूल बन
हवा के संग - संग
क्या वही होगी 
सच्ची मुक्ति...?

27 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुंदर...अर्थपूर्ण भाव लिए रचना

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  2. अपेक्षाएं और जीवन ....सत्य और मुक्ति ....दर्शन की लाजबाब अभिव्यक्ति हुई है आपकी इस रचना में ...!

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  3. कण-कण में भगवान, विखंडित होना नवनिर्माण एवं शक्तिशाली होने का द्योतक है। मुक्ति कहाँ? और किसने पाई है? मुक्ति पाना मन का भ्रम है। बस आना और जाना है, रिश्ते और दुनि्यादारी निभाना है।

    आतम के अस्थान हैं,ज्ञान,ध्यान,विश्वास ॥
    सहज,शील,संतोष,सत,भाव,भक्ति निधि पास॥

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  4. क्या वही होगी
    सच्ची मुक्ति...?
    बहुत ही बढिया।

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  5. बहुत गहरे भाव लिए रचना..
    अपेक्षाओं तले दबकर
    फूट जाऊँगा एक दिन ......सच्ची मुक्ति...?
    बेहतरीन पंक्तिया...

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  6. "मृत्युंमां अमृतं गमय" , sundar .

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  7. vAH! sANDYA ji APNE tO PATTHAR KI BHI fEELING sAMAJH LI ..

    sACCHA kAVI mAN AISA HI HOTA HAI...

    sUNDER kAVITA ..

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  8. हाँ बिलकुल वही मुक्ति है जब अस्तित्व में विलीन हो जाएँ.....सुन्दर पोस्ट।

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  9. अपेक्षाओं तले दबकर
    फूट जाऊँगा एक दिन
    उड़ जाऊंगा माटी बन
    दसों दिशाओं में
    समाप्त हो जायेगा
    मेरा अस्तित्व
    उड़ेगा धूल बन
    हवा के संग - संग
    क्या वही होगी
    सच्ची मुक्ति... यह भी तय नहीं .... बहुत ही गहन भावाभिव्यक्ति

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  10. शिला में भी मुक्ति की चाह..सुन्दर कहा आपने संध्या जी..

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  11. अर्थपूर्ण भाव लिए सुन्दर रचना

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  12. बहुत सुंदर ...

    गजब लिख रही हैं आजकल ..

    बधाई और शुभकामनाएं !!

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  13. जीवन का कटु सत्य है.... जिससे आपने अवगत कराया है....

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  14. मुक्ति के गीत जीवन के संग अद्भुत संजोग वियोग का सम्प्रेषण

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  15. अपेक्षा के भार से
    मुक्त रहा युगों तक

    ye baat kavita me jachi nahi. ya to main kahin galat nazariye se soch rahi hun.

    bahut sargarbhit rachna.

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  16. जीवन का हर नाता,हमको देता है शक्ति
    अस्तित्व में विलीन हो,मिलती है मुक्ति,,,,,,,

    लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,,,
    RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....

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  17. बहुत ही गहन भाव !
    उत्कृष्ट अभिव्यक्ति !

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  18. जीवन का फलसफा | सब चाहते बस वर्तमान से मुक्ति |

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  19. अपेक्षाओं तले दबकर
    फूट जाऊँगा एक दिन
    उड़ जाऊंगा माटी बन
    दसों दिशाओं में .............

    एक स्त्री से जोड़ कर पढूं तो भी सार्थकता पाती हूँ रचना की...
    बेहतरीन कविता संध्या जी.
    सस्नेह
    अनु

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