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बुधवार, 18 जून 2025

सहनशीलता का प्रकाश... संध्या शर्मा


जब शरीर की थकी लकीरें  

आत्मा को घेर लेती हैं

और मन के कोलाहल में  

एक सन्नाटा छा जाता है।  


तब भीतर के मंदिर में  

खड़ी होती आत्मा विनीत

उस निराकार से पूछती  

जो है सबका अदृश्य नीड़।  


"क्या कहा?" – केवल चुप्पी

"क्या सुना?" – केवल स्थिरता

उत्तर सतह पर अक्षर नहीं

न उठा कोई स्वर चमत्कारी।  


उतरा वह अनुत्तर धीरे - धीरे

सहनशीलता की गहराई में 

सागर सा विशाल विस्तार

पर्वत सी अडिग मजबूती।  


एक ठहराव सा विश्वास

कि प्रत्येक रात के पश्चात  

उगता सूरज नया प्रकाश

हर तूफ़ान के बाद शांति।  


यह भाषा है बिना शब्दों की,  

एक वरदान है बिना माँग का

सहनशीलता में छुपा ज्ञान 

आत्मा को मिला परम उपहार


जब शब्द फीके पड़ जाते

तब सहनशक्ति बोलती है

भीतर के ईश्वर का स्वर  

चुपचाप समाधान देता है।  


धैर्य में छिपा है वह प्रकाश

जो दिखाता अँधेरे में मार्ग

आत्मा की थकान धुल जाती

जब बहती है सहनशीलता भक्ति के साथ...

----  संध्या शर्मा ----


11 टिप्‍पणियां:

  1. सहनशीलता का इस्तेमाल क्या हथियार के रूप में किया जा सकता है,शायद नही

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    उत्तर
    1. ईश्वर के समक्ष हथियार की क्या आवश्यकता होगी भला?

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  2. सुन्दर ... भावपूर्ण रचना ... इश्वर को समर्पण शायद सब कुछ है ...

    जवाब देंहटाएं
  3. सहनशीलता का प्रकाश जटिल से जटिल परिस्थितियों का तम हर लेने में सक्षम है।
    अति सुंदर रचना।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. गहन ध्यान के अनुभव को सुंदर शब्द दिये हैं आपने संध्या जी !

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  5. बहुत सुंदर रचना मन को छू लेती अभिव्यक्ति ।

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  6. यार, ये कविता तो जैसे रूह को छू गई क्युकी आपने इस कविता के माध्यम से “सहनशीलता” को कोई भारी-भरकम चीज़ नहीं, बल्कि एक सच्चा दोस्त बना दिया। जब थकान बोलने लगती है और जवाबों की आवाज़ नहीं आती, तब यही शांत भरोसा साथ खड़ा दिखता है। और जो लाइन थी “जब शब्द फीके पड़ जाते, तब सहनशक्ति बोलती है”—भाईसाब, क्या ही सटीक कहा है।

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